इस विराट संसार में,
हैं, बहुत सी निधियां।
निधियों को पाने की,
हैं बहुत सी विधियाँ।
मेरी सबसे बड़ी निधि,
तुम मेरी जीवन साथी।
दुनियां के सब संबंधों में,
हम तुम जैसे दीपक-बाती।
प्रिये तुम्हारे नयनो को,
निश - दिन देखा करता हूँ।
झील सी गहरी आँखों में ,
AKSAR कुछ खोजा करता हूँ।
पानी ग्रहण कर प्रिये तुम्हारा,
मैंने, सबसे बड़ी निधि पाई।
संस्कारी बच्चे और परिवार,
तुम्हारे विस्वास की पूंजी पाई।
इस देह में हूँ जब तक,
सम्बन्ध न छूटेगा तुमसे।
चाँद सितारे हैं जब तक,
बिछ्रुंगा न तुमसे।
देह लोक से चला गया तो,
मत रोना तुम मेरे शोक में।
खुशियों से जीना तुम जीवन,
मिलने आना सुक्ष्म लोक में।
वायु रूप जब बन जायुं ,
तो, मिलना मुझसे मेरी निधि।
सुक्ष्म लोक जब न आंयु ।
तो बतलाना मुझको कोई विधि।
कवी - राम बरन यादव
काव्य संग्रह - मन की मनीषा
प्रकाशक - रंग प्रकाशन, ३३ बक्षी गली, राजवाडा, इंदौर, म-प्र- ४५२००१
Sunday, September 12, 2010
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment